डॉ०रामबली मिश्र

*ग्रंथि खुलेगी*


   *(वीर छंद)*


 


मन को रखना होगा साफ,


               ग्रंथि खुलेगी अंतःपुर की।


भेदभाव का हो जब नाश,


              ग्रन्थि मिटेगी तब अंदर की।


स्व का पर से रहे लगाव,


             करो सफाई नित भीतर की।


गुण को देखो दोष न देख,


           करो प्रशंसा अंतःपुर की।


पढ़ना सदा प्रेम का पाठ,


           देना त्याग घृणा अंदर की।


समझो सबको एक समान,


           जगे मनुजता अंतःपुर की।


व्यापक बनकर जीना सीख,


           उन्नत बने भूमि भीतर की।


मानवता से कर संवाद,


           संवेदना बढ़े अंदर की।


जल-भुन कर मत होना राख


           जगे चेतना अंतःपुर की।


कपट त्यागकर रहना मस्त,


           रहे जिंदगी खुश भीतर की।


सकल दुराग्रह को दो त्याग,


          रखो स्वच्छता अंतःपुर की।


कर विवेक का सदा प्रयोग,


           करो वंदना नित्य जिगर की।


सबको अपना भाई मान,


           करो कल्पना नहीं दिगर की।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...