डॉ०रामबली मिश्र

*नशीला*


प्रेम इतना नशीला पता था नहीं।


प्रेम कितना नशीला पता था नहीं??


प्रेम को देख बेहोश हो गिर पड़ा।


हम पड़े हैं कहाँ कुछ पता ही नहीं।


देख कर यह दशा प्रेम भावुक हुआ।


बोला, अब तुम स्वयं को जलाना नहीं।


आओ पकड़ो भुजायें रहो पास में।


दिल पर रख हाथ खुद को बुझाना नहीं।


हम बसे हैं तुम्हारे हृदय में सदा।


अपने मन को मलिन तुम बनाना नहीं।


जो कमी हो कहो पूरी होगी सहज।


अपने दिल को कभी तुम सुलाना नहीं।


जिंदादिल बनकर रहना सदा सीख लो।


अपने दिल को कभी तुम सताना नहीं।


प्रेम को देखकर खुश रहो सर्वदा।


दुःख के आँसू कभी तुम बहाना नहीं।


प्रेम निर्भय निराकार ओंकार है।


हाड़-मज्जा के मंजर पर जाना नहीं।


प्रेम यमदूत होता नहीं है कभी।


प्रेम को देख नजरें चुराना नहीं।


 


प्रेम है स्वच्छ पावन सदा पीरहर।


प्रेम को देखकर धैर्य खोना नहीं ।


भाग्य से प्रेम मिलता जगत में समझ।


प्रेम पाया अगर चाहिये कुछ नहीं।


प्रेम पर्याप्त है जिंदगी के लिये।


प्रेम से है बड़ा जग में कुछ भी नहीं।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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