डॉ०रामबली मिश्र

*प्रेम -पात्र*


 


प्रिय प्रेम पिलाता हूँ,


      नाराज नहीं होना।


मन के मधु भावों को,


     प्रिय मत ठुकरा देना।


 प्रेम दीवाना आज,


     इसको सहला देना।


उठ रही तरंगें हैं,


       इनको फुसला देना।


पी लेना प्रेमांजुलि,


       निर्वाध पिला देना।


हृदसागर में उफान,


      उर में बैठा लेना।


प्रेमपात्र अब भर लो,


       रिक्त न रहने देना ।


आँखों की पलकों में,


        प्रिय ज्वार समा लेना।


बन जा गंगा सागर,


         द्वंद्व मिटा देना।


भेद रहित सब कुछ हो,


            इंसान बना देना।


सीने से प्रिय मन को,


            बेरोक लगा लेना।


हे प्रेमपात्र दिलवर!


             विश्राम मना लेना।


 मुर्झायी आँखों को,


              रसपान करा देना।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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