डॉ०रामबली मिश्र

*होना दुःखी...*


 


होना दुःखी देख दुःखिया को।


यही सीख देना दुनिया को ।।


 


देख दुःखी मोहित हो जाना।


दुःखी हेतु कुछ करते जाना ।।


 


"मदर टेरेसा" बनकर जीना।


दुःखियों के आँसू को पीना।।


 


संकटमोचन बनकर चलना।


महावीर हनुमानस बनना।।


 


भर लो भीतर संवेदन को।


स्वीकारो दुःख-आवेदन को।।


 


दुःखी जगत की सुनो प्रार्थना।


दुःख के मारे करत याचना।।


 


जीवन का यह काम बड़ा है।


अन्य काम इससे छोटा है।।


 


जो करता दीनों की रक्षा।


बन जाता वह सबकी शिक्षा।।


 


जो विद्यालय बनकर जीता।


अमृत रस आजीवन पीता।।


 


बना अमर वट छाया देता।


सारे कष्टों को हर लेता।।


 


जिसके भीतर प्रेम रसायन।


उसके रोम-रोम शोभायन।।


 


जो दे देता अपना तन-मन।


वह बन जाता पावन उपवन।।


 


सकल जगत को सींचा करता।


दुःख-दरिद्रता खींचा करता।।


 


सुंदर भाव जहाँ बहता है।


कायम स्वर्ग वहाँ रहता है।।


 


जहाँ राम का नाटक होता।


वहाँ विभव का फाटक होता।।


 


सन्त मिलन की संस्कृति जागे।


दुःख-दारिद्र्य-रोग सब भागें।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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