*मेरे मन का मीत*
*( चौपाई ग़ज़ल)*
मेरे मन का मीत मिला है।
दिल का प्यारा हुआ खुला है।।
यह स्वप्निल स्नेहिल स्वर्णिम अति।
साथ निभाता हिला-मिला है।।
चमक रहा है तेजपुंज सा।
बहुत दुलारा घुला-मिला है।।
साथ छोड़कर कहीं न जाता।
हाथ पकड़कर राह चला है।।
है मदमस्त निराला सुंदर।
मृदु भाषण की दिव्य कला है ।।
गीत सुनाता मधुर स्वरों में।
अतिशय मोहक कंठ खिला है।।
अति मोहक है रूप अनोखा।
सहज मोहनी मंत्र मिला है।।
लचकदार है देह मनोरम।
ऐसा मानो प्रेम किला है।।
मन अति स्वच्छ सरल निष्कामी।
दंभरहित प्राणी अगला है।।
वीन बजाता सुधि-बुधि खो कर।
अति आनंदक सरस गला है।।
अकथ कल्पना लोक निवासी।
बड़े भाग्य से मीत मिला है।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
*दर्द न देना मेरे प्रियवर*
*(चौपई)*
दर्द न देना मेरे प्रियवर।
दिल न दुखाना मेरे दिलवर।।
तेरा ही है बड़ा सहारा।
यह असहाय घोर बेचारा।।
इसे त्याग मत देना प्रियतम।
हे प्रेमी मादक अति अनुपम।।
तुझे देखकर यह जीता है।
अब तक आया गम पीता है।।
भुला न देना इसको प्यारे।
हे इस बेघर के रखवारे।।
हे कोमल सुकुमार सुहाना।
नहीं समझ इसको बेगाना।।
हे प्रिय!इसको अपना लेना।
दिल में इसको बैठा लेना।।
बहुत दिनों का यह है भूखा।
भरता खा कर रूखा-सूखा।।
रहम करो हे प्रेम निधाना।
वंदनीय हे जगत सुजाना।।
हे प्रियतम!हे शिष्टाचारी।
हे अनंत भावुक सुविचारी।।
कृपा करो हे प्रेम विधयक।
हे स्वामी! हे लोक विनायक।।
हे अथाह!हे करुणाश्रय नित।
आलिंगन से करो प्रकाशित।।
हाथ पकड़ कर साथ ले चलो।
बाँहों में नित जकड़ ले चलो।।
ममता की मूरत बन जाओ।
प्रेम दान कर फर्ज निभाओ।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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