*चलो चूमते.... (चौपाई ग़ज़ल)*
चलो चूमते सारी धरती।
हरी-भरी दिख जाये परती।।
एक-एक कण का हिसाब रख।
भरो अंक में सारी धरती।।
चूमो इसको समझ प्रेयसी।
प्यारी बहुत दुलारी धरती।।
यही प्रेयसी मातृ भाव से।
सारे जग का पालन करती।।
करो नमन नित सहज समादर।
हरियाली से मन को हरती।।
भूमि संपदा नैसर्गिक है।
परमार्थी बन पोषण करती।।
सृष्टि असंभव बिन मिट्टी के।
धरती से ही सारी जगती।।
अर्थवती नित मूल्यवती यह।
हर प्राणी की सेवा करती।।
चूमो गले लगाओ माटी।
सदा रसामृत सारी धरती।।
हँसती जब यह फसल लपेटे।
देख रूप यह जगती हँसती।।
यह आधारशिला जीवन की।
लिये उदर में नीर मचलती।।
धरती का कण-कण अति पावन।
इत्र सदृश यह सतत गमकती।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
*रस बरसेगा*
*(तिकोनिया छंद)*
रस बरसेगा,
नित मँहकेगा।
मन चहकेगा।।
मधुर मिलन हो,
गुप्त हिलन हो।
दिल बहलन हो।।
प्रीति जगेगी ,
रात सजेगी।
खुशी मिलेगी।
मितवा आये,
गीत सुनाये।
मोह दिखाये।।
नित दर्शन हो,
प्रिय स्पर्शन हो।
प्रेम मगन हो।।
सुख समता हो,
स्वर्गिकता हो।
मधुमयता हो।।
भोग समांतर,
सुख अभ्यंतर।
मेल निरंतर।।
रचनाकार०:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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