*रचना शीर्षक।।*
*वही आता है जीत कर जो खुद*
*पर एतबार करता है।।*
खुशियों को ढूंढने वाले धूल
में भी ढूंढ लेते हैं।
ढूंढने वाले तो काँटों के बीच
फूल को ढूंढ लेते हैं।।
दर्द को भी बनाने वाले बना
लेते हैं जैसे कोई दवा।
ढूंढने वाले तो खुशियों को
शूल में भी ढूंढ लेते हैं।।
फूल बन कर बस मुस्कराना
सीख लो जिंदगानी में।
दर्दो गम में भी मत रुको तुम
इस मुश्किल रवानी में।।
हार को भी स्वीकार करो तुम
इक जीत की तरह।
यही तो फलसफा छिपा इस
जीवन की कहानी में।।
जीतता तो वो ही जो कोशिश
हज़ार करता है।
वो हार जाता जो शिकायत
बार बार करता है।।
हार भी बदल जाती है जीत में
हमारे हौंसलों से।
वहजीतकर जरूरआता जो खुद
पर एतबार करता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर " श्री हंस*"
*बरेली।।*
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