एस के कपूर श्री हंस

*आज का विषय।।मित्र/मित्रता।।*


*रचना शीर्षक।।कोशिश करो कि*


*जिन्दगी हमारी अपनी मित्र*


*बन जाये।।*


 


मुस्करा कर ही जीना तुम


इस जिंदगानी में।


माना कि कुछ रास्ते खराब भी


हैं इस रवानी में।।


जान लो कि जिन्दगी फिदा है


इस मुस्कराहट पर।


चाहे कितने गम हों जीत कर ही


आओगे इस कहानी में।।


 


यह जीवन बस इम्तिहानों का ही


दूसरा नाम है ।


एक रास्ता बंद हो तो भी जान लो


दूसरे तमाम हैं ।।


तुम्हारा भाग्य तुम्हारे कर्म की ही


मुट्ठी में होता है कैद ।


यह किस्मत की लकीरें तेरे परिश्रम


का ही ईनाम हैं ।।


 


गमों में भी मुस्कारनें की यह आदत


बहुत अलबेली है।


तन्हाई में भी जिन्दगी कभी रहती


नहीं अकेली है ।।


तनाव अवसाद फिर असर नहीं


करते आदमी पर ।


कभी यह जिन्दगी हमारी बनती


नहीं फिर पहेली है ।।


 


कोशिश करें कि जिन्दगी हमारी


अपनी ही मित्र बन जाये।


वक़्त मुश्किलों का भी हमारा


सचरित्र बन जाये।।


बस खुश रहें हम हर वक़्त और


हर दर्दो गम में ।


जिसका हर जवाबो हल हो बस


जिंदगी ऐसा चित्र बन जाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब 9897071046


                            8218685464


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511