काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार चन्दन सिंह "चाँद"

जीवन परिचय 


 


मूल नाम - चन्दन सिंह 


 


साहित्यिक नाम - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


जन्मतिथि - 4 सितंबर , 1986


 


शिक्षा - बी.ए , बी.एड


 


सहधर्मिणी - रतिमा सिंह 


 


माता - श्रीमती कमला देवी 


 


पिता - श्री अरविन्द सिंह 


 


रुचि - पठन - पाठन , साहित्य , बागवानी


 


विधाएँ - ओज रस में कविता लेखन 


 


प्रकाशित पुस्तक - नाद ( ओजस्वी कविता संग्रह )


 


साझा संकलन - काव्य श्री , शहीद , साहित्य - दर्शन


 


* सहित्यसुधा वेबपत्रिका में कविताएँ प्रकाशित 


 


* मधुसंबोध शैक्षिक पत्रिका में लेखों का प्रकाशन 


 


* अग्निशिखा अखिल भारतीय पत्रिका में कविता प्रकाशित


 


* विभिन्न साहित्यिक मंचों से जुड़ाव 


 


प्राप्त सम्मान - 


* साहित्य सम्राट सम्मान 


* साहित्य रत्न सम्मान 


* परमवीर साहित्य रत्न सम्मान 


* रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान  


* साहित्य भूषण सम्मान 


* काव्य श्री सम्मान 


* उन्मुक्त काव्य सम्मान 


* दिनकर सम्मान 


* साहित्य साधक सम्मान 


* साहित्य वीर अलंकार सम्मान 


* राष्ट्रप्रेमी सम्मान 


* प्रबुद्ध नागरिक सम्मान 


* शिवशक्ति कलाधर सम्मान 


* शिवशक्ति काव्य श्री सम्मान 


* स्वरलहरी सम्मान 


* साहित्य सारथी सम्मान


* प्रेम सौहार्द सम्मान


* साहित्य सारथी सम्मान 


* साहित्य सरस्वती सम्मान


* काव्य भास्कर सम्मान


* साहित्य श्री सम्मान


* लिटरेरी कैप्टन अवार्ड 


* कलम सृजक सम्मान 


* लिटरेरी कर्नल अवार्ड 


* रचना प्रतिभा सम्मान


* राष्ट्रीय कलम गौरव सम्मान 


* साहित्य पीठ सम्मान 


 


निवास - 


ग्राम - अम्बातरी, पोस्ट - मायापुर, प्रखंड - मयूरहण्ड,


जिला - चतरा ( झारखण्ड )पिन नंबर - 825408


 


संपर्क सूत्र - chandanbhaiya12@gmail.com


मोबइल नंबर - 9588023801


व्हाट्सप्प नंबर - 8058963244


ईमेल आईडी - chandanbhaiya12@gmail.com


 


शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हूँ तथा स्वयं को अनंत पथ पर बढ़ते एक यात्री के रूप में देखता हूँ ।


 


हिंद का सैनिक 


 


उठो हिंद के वीर जवानों !


देश की माटी करे पुकार


रक्त तिलक तुम आज लगाकर 


अरि दल का कर दो संहार 


 


रिश्ते-नाते का मोह त्याग कर 


निकल पड़ो छोड़ घर - बार


राष्ट्रभक्ति की धधकती ज्वाला से 


करो आज माँ का श्रृंगार 


 


हिमगिरि की विशाल चोटियाँ 


तेरी हिम्मत के आगे बौनी हैं


फड़क उठी हैं आज भुजाएँ


जब बदला लेने की ठानी है


 


खून आज उबाल मार रहा 


अंग - अंग में साहस का हुआ संचार 


भरत सपूतों की यह सेना 


दुश्मन पर करेगी अचूक वार 


 


हिंद का सैनिक , हिंद का गौरव


दिया तूने सर्वस्व है वार 


हे राष्ट्र प्रहरी , हे राष्ट्र सपूत !


नमन करुँ तुझको शत बार ।।


नमन करुँ तुझको शत बार ।।


 


© - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


हम भारत के बच्चे 


 


भारत माता की जय का जयघोष लगाने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं


 


वसुधैव कुटुम्बकम का परचम लहराने आए हैं


जीओ और जीने दो का संदेश सुनाने आए हैं


भारत की गौरव गाथा का गीत सुनाने आए हैं


अखंड राष्ट्र की संस्कृति का बोध कराने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं 


 


भारत की इस पुण्य धरा पर प्राण लुटाने आए हैं


मानवता के इस संगम का पर्व मनाने आए हैं


मिली हुई आज़ादी की कीमत बतलाने आए हैं


भारत माता के चरणों में फूल चढ़ाने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं


 


हर दिल में देशभक्ति की ज्योत जलाने आए हैं


भारत की दिव्य माटी का तिलक लगाने आए हैं


महापुरुषों की इस भूमि को स्वर्ग बनाने आए हैं


राष्ट्रवेदी पर अपना सर्वस्व चढ़ाने आये हैं 


 


भारत माता की जय का जयघोष लगाने आये हैं ।


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आये हैं ।।


 


© - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


लक्ष्य - पथ 


 


लक्ष्य पथ पर बढ़ तू मुसाफिर 


लक्ष्य पथ पर चलता जा


हर संघर्ष को करके पार 


विजय पताका फहराता जा 


 


बिना धरती पर गिरे कहो 


नवजात कहीं चल सकता है 


बिना प्रयास किए कहो 


क्या कोई सफल हो सकता है ? 


 


बिना नरक से गुजरे कहो 


क्या स्वर्ग का सुख मिल सकता है ?


बिना विष को चखे कभी 


अमृत का स्वाद पता चलता है 


 


पर्वत - शिखर पर चढ़ने से पहले


तलहटी से कदम बढ़ाना होगा 


अनंत ऊंचाइयों को छूने से पहले 


गहराइयों में उतरना होगा


जमीन से उठकर जो बढ़ता है 


सफलता के सोपान वही चढ़ता है 


कुदरत का नियम कुछ ऐसा है 


जो चढ़ता है वही गिरता है 


जो गिरता है वही उठता है


 


चलो , उठो , निराशा छोड़ो 


मन में दृढ़ संकल्प और आशा भर लो 


अपने भीतर की शक्ति को पहचानो 


लक्ष्य पथ पर बढ़ने की ठानो


 


मंजिल भी उसी को मिलती है


जो कदम से कदम बढ़ाता रहे 


ठोकरों से गिरे , फिर सँभले 


चलता और बस चलता ही रहे


 


चलने का नाम ही जीवन है 


बढ़ने का नाम ही जीवन है 


जब धारा बहती रहती है 


वह निर्मल कहलाती है 


जब धारा रुक जाती है 


वह गंदली हो जाती है


 


नव उमंग की डोर पकड़कर 


अपने सपनों को पंख लगाओ 


प्रचंड ऊर्जा और पुरुषार्थ के साथ 


लक्ष्य पथ पर बढ़ते ही जाओ ।


लक्ष्य पथ पर बढ़ते ही जाओ ।।


 


- ©चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


सड़क 


 


मैं सड़क हूँ , मैं सड़क हूँ 


सबको अपनी मंजिल तक हूँ मैं पहुँचाती


हर किसी का भार मैं सहर्ष उठाती


 


चलती हैं मुझपर रोज़ अनगिनत गाड़ियाँ


इन गाड़ियों के झरोखों से झाँकते हैं बच्चे प्यारे 


कूदते हैं और मचलते देखकर चलते नज़ारे


 


कोई यात्री ले रहा नींद में डूबा खर्राटा


और कोई चल पड़ा है आज करने सैर - सपाटा


 


पहले चलते थे मुझपर पथिक पैदल और चलती थी साइकिलें 


अब इस मोटरकार की बाढ़ से बढ़ी हैं मेरी मुश्किलें


 


खाँसती हूँ और सँभलती इन काले धुओं के गुबार से 


दिल मेरा छलनी है होता इन मनुजों के व्यवहार से


 


पता नहीं आज किसे लगेगा धक्का ? कौन होगा घायल ? किसकी होगी दुर्घटना ? 


सोचकर विह्वल मैं रहती और करती हूँ सर्वमंगल प्रार्थना 


 


नहीं चाहिए मुझे रक्तरंजित आँचल , नहीं देख सकती तड़पते हुए प्राण 


कृपा करो , कृपा करो , कृपा करो हे दयानिधान !


 


लोग मुझको स्वच्छ बनाएँ ,


मेरे दोनों छोर पर वृक्ष लगाएँ


चलते समय रहें सतर्क और सावधान 


घायल व्यक्ति पर दें सब समुचित ध्यान 


स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।


स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।।


 


- ©चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


जागो विश्वविधाता 


 


सारी दुनिया जिनके चरणों में


आज पड़ी है नतमस्तक 


जागो हे भागवतम भारत !


हे ब्रह्मकमल की दिव्य महक !


 


सकल जगत कर रहा आवाहन


जड़ - चेतन दे रहे निमंत्रण 


महाकाल का तुझे निवेदन 


जागो जननी , जागो माता 


जाग उठो हे विश्वविधाता !


 


हे सकल जगत की अग्निशिखा !


हे दिव्यज्योति भारत माता !


प्रगटो तव मूल रूप में अब 


हे परम ज्ञान की विज्ञाता !


 


जागो जागो हे परमप्रभु !


जागो जागो हे विश्वगुरु !


हे जग की जननी अब जागो 


हे भारत धरिणी अब जागो 


 


नन्हा शिशु आर्त पुकार रहा 


चरणों की ओर निहार रहा 


आओ माँ अब कर दो मंथन 


यह जगत बने तव मधुर सदन


 


अंग - अंग से उठी पुकार 


माँ अब तेरे शिशु तैयार 


आज गढ़ तू नवल जगत 


जग जाए भागवतम भारत 


 


माँ आ जाओ अब जीवन में


उतरो माँ तुम अब कण - कण में 


ले नई चेतना तुम आओ 


हृदयों में आज समा जाओ 


 


उठ चुका उदधि में है तूफान 


चरणों में नत हैं कोटि प्राण 


माँ आज कर तू यह भू महान 


माँ ला दे अब तू नव विहान 


 


माँ बस यही है प्रार्थना 


माँ सिद्ध कर तू साधना 


भारतभूमि अब भव्य हो 


जगतमूर्ति यह दिव्य हो ।।


 


- ©


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