निशा अतुल्य

सर्दी आई


 


माँ देखो अब सर्दी आई


मेरे मन को ये लुभा गई


गर्म मुंगफली की महक है


मीठी रेवड़ी मन भा गई ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई ।।


 


नरम गर्म है मेरा बिस्तर


मज़ा आ गया उस पर सो कर 


माँ मुझको तुम सूप पिलाओ


गर्मी शरीर में पहुँचाओ ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सूरज भी अब मद्धम दिखता


ताप ना क्यों जरा भी लगता 


सर्द हवा जब सर सर चलती


कानो को मफलर है भाता ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सर्दी से हमें बच कर रहना


स्वस्थ स्वयं को हमें है रखना


गर्म वस्त्र पहनने होंगे 


माँ मेरी अचकन सिलवाना।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511