सरस्वती काव्यकृतां महीयताम्
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी
सकल जगत को तुम हर्षाते
छवि अलौकिक मन में समाते ।
क्षीर-मंथन हुआ सृष्टि का
निकले अद्भुध रत्न संपदा
गरल निकल जब बाहर आया
त्राहि त्राहि सब ओर मचाया ।
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी ।
हाहाकार मचाया विष जब
सूनी लगती सकल धरा तब
शंकर तो कैलाश विराजे
चले देव दानव तब प्यासे ।
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी ।
रोक लिया प्रभु गरल कंठ जब
कहलाये प्रभु नीलकंठ तब ।
आशुतोष सिर गंगा मोहे
कंकण नाग हार गल सोहे
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी ।
माँ गौरी वामांग विराजे
वर मुद्रा धार सृष्टि तारे
मात पिता पूजन कर गणपति
प्रथम पूज्य वर पाइ सम्मति ।
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी।
जय जय जो एक दंत मनाते
विघ्नहर्ता विघ्न हर जाते
रिद्धि सिद्धि सँग देवा आते
शंकर गौरी पुत्र कहलाते ।
शिव शंकर भोले भंडारी
महिमा तेरी है अति प्यारी ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
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