कैसे कटेंगे अब,पहाड़ से ये दिन
मदिरालय का आंगन देखो
जो गिरते हैं कब उठते हैं
कितने प्यारे अपने छुट गये
जो छुट गये फिर कहां मिलते हैं
जीवन में मधु का प्याला था
वह टूट गया तो टूट गया
व्यक्ति रोता है चिल्लाता है
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन
कौन कहता है कि सुंदर स्वप्नों को
न आने दें हृदय में
देखते सब है, इन्हें भावुक होकर
अपनी उमर अपने समय में
पर सपना तो सपना होती हैं
मिल नहीं सकती वैसी सफलता
महंगाई और बेरोज़गारी देख
व्यक्ति रोता है चिल्लाता है
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन
जब तक सांस चलती हैं
तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर
जीवन पथ कठिन और पथरीला है
मत बना बैठ जाने का बहाना
समय चला गया हाथ से तो
लौटने वाले नहीं हैं
खोज लेे मन का मीत कोई
आशा जगाना कब मना है
खो मत देना विश्वास पूरा
विश्व की संवेदना में
धुमिल हो जाता है,उल्लास के आधार तो
व्यक्ति रोता है चिल्लाता है
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन
नूतन लाल साहू
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