इत्तेफाक
सजग नयन से तूने देखा
रवि का रथ चढ़कर आना
धीमी संध्या की गति देखी
तूने अपने इसी नयनों से
झूम झूम बल खाती हंवा
खेलती हैं हर डाल से
यह शून्य से होकर प्रकट हुआ
पर महज इत्तेफाक नहीं है
कौन तपस्या करके कोकिल
इतना सुमधुर सुर पाया
पर ऐसा क्या घटित हुआ
काली कर डाली काया
निशदिन मधुर संदेश देती
यह खेलती हर डाल से
उठता है प्रश्न बार बार
पर महज इत्तेफाक नहीं है
जिस निश्चय से अर्द्ध रात्रि में
गौतम निकले थे घर से
देख उन्होंने कोई तरु सूखा
द्रवित हुई होगी मन में
दिन कितने राते भी कितनी
बीती होगी चिंतन में
घोर तपस्या करके उन्होंने
लीन किया होगा मन को
ऋषियों की पावन वाणी
गूंजी होगी कण कण में
उठता है प्रश्न बार बार
पर महज इत्तेफाक नहीं है
नूतन लाल साहू
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