नूतन लाल साहू

सत्संग से मिलता है ज्ञान


 


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


 रास्ता भी अंदर है


तेरा निर्मल रूप अनूप है


नहीं हाड़ मांस की काया


निराकार निर्गुण अविनाशी


चेतन अमल सहज सुखरासी


अलख निरंजन सदा उदासी


तू व्यापक ब्रम्ह स्वरूप है


फिर भी भुलाकर अपने रूप को


तू कहां कहां भटक रहा है


तू तो सब प्राणियों में श्रेष्ठ हैं


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


जगत में जीवन है,दिन चार


कल के लिए कोई काम न टाल


जो सोया सो खोया


जो जागा सो पाया


पशु पक्षी सहित सब जीवन में


ईश्वर अंश निहार


मधुर वचन है औषधि 


कटुक वचन है तीर


किसका तू है और है कौन तुम्हारा


स्वारत रत है संसार


जग में सुंदर है दो नाम


चाहे कृष्ण कहो या राम


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमत्मा भी अंदर है


और परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


नूतन लाल साहू


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