नूतन लाल साहू

डगमगाना नहीं


 


रहे हिंसा से दूर


प्रेम से भरपूर


मानव ही तो इंसान है


स्वीकारे एक धर्म,मनुष्य धर्म


हमारे मन चंगा


तो कठौती में गंगा


आत्म विश्वास को अपने


बनाये रखना है


रहे हिंसा से दूर


प्रेम से भरपूर


उस पार का भय भी तुझे


कुछ भी नहीं सता पायेगा


उस तरफ के लोक से भी


तेरा नाता जुड़ जायेगा


रहे हिंसा से दूर


प्रेम से भरपूर


पंथ जीवन का चुनौती


दे रहा है हर कदम पर


आखिरी मंजिल नहीं होती


कहीं भी दृष्टिगोचर


आत्मविश्वास ही पहुचायेगा,लक्ष्य तक


रहे हिंसा से दूर


प्रेम से भरपूर


मिल गया,मांगा जो बहुत कुछ


पर कहां संतोष मन में


दोष दुनिया का नहीं है


यदि कहीं है तो,दोष मन में


जब तक जीवन काल हमारा


बस तब तक रहेगा हर नाता


रहे हिंसा से दूर


प्रेम से भरपूर


मानव ही तो इंसान है


स्वीकारे एक धर्म, मनुष्य धर्म


नूतन लाल साहू


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