राजेंद्र रायपुरी

🪔🪔 ये त्यौहार निराला 🪔🪔


 


आशाओं के दीप जले हैं, 


               घर-घर देखो हुआ उजाला।


द्वारे-द्वारे सबने अपने, 


                 सुंदर आज रॅ॑गोली डाला।


 


खाता -बही नए ले आया, 


               नए साल का चिट्ठा लिखने।


पूजन की तैयारी करके,


                  जाने कब से बैठा लाला।


 


नये-नये कपड़े हैं सबके,


                   नहीं पुराना कोई पहना।


रंग- बिरंगे दिखते कपड़े, 


                मगर न कोई भी है काला।


 


भैया धन बरसेगा घर में, 


                  सुना यही सबसे है हमने।


लेकिन कैसे ये बतलाओ,


                 पूछ रही हमसे वो खाला।


 


क्या उसको मैं यार बताऊॅ॑, 


                 कैसे उसको ये समझाऊॅ॑।


धन की देवी आतीं घर में,


                 सच में ये त्यौहार निराला।


 


फोड़ फटाके लोग रहे हैं, 


           मना किया शासन ने फिर भी।


जानें वायु प्रदूषित होती, 


             फिर भी शौक सभी ने पाला।


 


मानो भाई,कहना मानो, 


            मत ज़िद केवल अपनी ठानो।


कहीं पहनना मत पड़ जाए,


           कल ही तुम को अंतिम माला।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...