😌 लेख विधाता, टरे न टारे 😌
जीवन भर संघर्ष किया है।
घूॅ॑ट ज़हर का सदा पिया है।
किसको दोष कहो दें भाई।
किस्मत ही है ऐसी पाई।
कर्म किया फल हाथ न आया।
जाने कैसे प्रभु की माया।
खोदा कूप बहुत ही गहरा,
पानी लेकिन बूंद न पाया।
प्यासा मन,तन भी है प्यासा।
पूरी हुई नहीं अभिलाषा।
किए प्रयास ख़ास बहुतेरे,
हाथ लगी तो महज निराशा।
अश्रु भरे हैं नैन हमारे।
लेख विधाता टरे न टारे।
जीवन व्यर्थ हुआ सच मानो,
अब भी गर्दिश में है तारे।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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