राजेंद्र रायपुरी

चुनावी जंग 


 


छिड़ी है चुनावी जंग।


शब्दों के तीर,


छोड़ रहे हैं,


रथी-महारथी।


यही बनेंगे,


हमारे देश के कर्णधार,


सुनकर,


आती है हॅ॑सी।


 


बिन पेंदी के लोटे,


कर्म जिनके खोटे,


माननीय कहलाऍ॑गे।


आज छू रहे हैं पाॅ॑व,


कल को पेट पर,


लात जमाऍ॑गे।


 


ध्येय एक है,


अर्जुन जैसा।


उसे दिखती थी,


मछली की ऑ॑ख,


इन्हें केवल,


कुर्सी और पैसा।


 


जनसेवा के नाम पर,


ये गिद्ध,


निकालने को आतुर हैं,


भारत माता की ऑ॑ख।


नोच डालेंगे,


ये अंग-अंग।


छिड़ी है चुनावी जंग।


 


।। राजेंद्र रायपुरी।।


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