🌹🌹 एक चतुष्पदी 🌹🌹
ओस की बूॅ॑दे चमकतीं
मोतियों सी घास पर।
रवि किरण को है कहाॅ॑
आतीं कभी भी रास पर।
सोख लेती है उन्हें वह
निर्दयी सा रोज़ ही।
बच नहीं सकतीं वो बूॅ॑दे
रवि किरण ले ख़ोज ही।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें