एक गीत
रातरानी मैं सजन,
मकरंद तुम भरपूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
बात कोई और है,
या तुम नशे में चूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
राह तकती मैं खड़ी हूॅ॑,
तुम सजन आए नहीं।
भूल मुझसे कुछ हुई,
या व्यस्त साजन हो कहीं।
आ भी जाओ मत सताओ,
चाॅ॑द मैं तुम नूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
मन है व्याकुल हो कहाॅ॑ तुम,
कुछ समझ आता नहीं।
कर लिया श्रृंगार लेकिन,
कुछ मुझे भाता नहीं।
भाए कैसे तुम ही मेरी,
माॅ॑ग का सिंदूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
सेज सूनी अब तलक है,
साजना ये बिन तुम्हारे।
फूल भी कुम्हला गए सब,
साजना सच बिन तुम्हारे।
सेज ये बगिया सजन तुम,
रौनकें भरपूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
रातरानी मैं सजन,
मकरंद तुम भरपूर हो।
है मिलन की यामिनी ये,
क्यों कहो तुम दूर हो।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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