डॉ.
पिता का नाम -श्री जेठानन्द कटारिया
जन्म -6जून 1951मुजफ्फर नगर
कर्मस्थली -भिण्ड एवं ग्वालियर
लेखन विधा -गीत ग़ज़ल , दोहा , हाइकु , क्षणिका , कुंडलिया , कहानी लघुकथा , व्यंग , आदि सभी विषयों मेंं लेखन विशेष विधा ग़ज़ल , ग़ज़ल में दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी की परम्परा के शायर
स्वयं की दस पुस्तकें प्रकाशित , लगभग 35संकलनों का सम्पादन
देशभर मेंं तीन सौ से अधिक सम्मान , एवं कई उपाधियाँ , विद्यावाचस्पति , विद्यावारिधि , विद्या साग़र आदि अनेक मंचो से कविता पाठ , एक दर्जन के क़रीब साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन जिसमें देशभर के साहित्यकरों की भागीदारी
स्थाई पता -डॉ रमेश कटारिया पारस 30,कटारिया कुञ्ज गंगा विहार महल गाँव ग्वालियर म .प्र .474002
मों9329478477यही watsepp और फ़ेसबुक नम्बर है
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गीत
युगों युगों सारी दुनियाँ जिसको गाये
गीत प्रेम के मैं ऐसे लिख जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
मैं सूरज का वंशज हूँ किरणें बिखराता रहता हूँ
सबके मन की सुनता हूँ और अपनें मन की सुनाता हूँ
प्यार के दो मीठे बोलो पर बिना मोल बिक जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
मैं उसका अनुयाई हूँ जो तूफानों से टकराये
ऊंचे ऊंचे पर्वत उसका रस्ता रोक नहीं पाऐ
मैं भी अपना सीना तानें वहीं कहीं डट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
नौनिहालों तुम आओ तुमको तो आगे जानां है
तारों से आगे तुमको इक सुंदर जहाँ बनाना है
मैं क्यूँ रोड़ा बनूँ तुम्हारा रस्ते से हट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
शीतलता का नाम चंद्रमां ताप को सूरज कहते हैं
सुख दुःख धूप छाँव की तरहा हरदम चलते रहते हैं
चलता हूँ तो जिंदा हूँ मैं रुक गया तो मैं मिट जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
सच की राह पे चलनें वाले हरदम चलते रहते हैं
चाहे जैसी शीत लहर हो हरदम जलते रहते हैं
मैं इक नया सितारा बनकर अंबर पर झुक जाऊँगा
युगों युगों सारी दुनियाँ जिसको गाये
गीत प्रेम के ऐसे मैं लिख जाऊँगा
साँझ ढले तुम देखोगे आकाश में उन तारों के बीच कहीं दिख जाऊँगा
रामचंद्र जी की कथा का वर्णन
सीतापति दशरथ के पुत्र कौशल्या जी के जाये हैं
हम भक्तो को पार लगानें
मनुज रूप में आये हैं
दानवों का संहार किया
गुरु वशिष्ठ जी के मन को भाये हैं
जनकपुरी में धनुष तोड़ कर
सीताजी को वर लाये हैं
भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न जैसे भाइयों का साथ मिला
हनुमान सुग्रीव जटायु और विभीषण से हाथ मिला
अपनें पिता का वचन निभानें
भरत को राजपाठ दे आये हैं
रघुकुल की रीत निभानें की ख़ातिर
बन बन में भटकाये हैं
सोने की रावण की लंका दानवों से जीत कर लाये हैं
शबरी अहिल्या बाली और केवट का उद्धार किया
रावण के भाईयों और पुत्रों का संहार किया
लंका पुरी से सीताजी को ससम्मान साथ ले आये हैं
शूर्पणखा कुम्भकर्ण मेघनाथ खर दूषण अक्षय भी ना बच पाये हैं
रावण का वध कर के लंका
विभीषण को सौंप कर आये हैं
ऐसे प्रिय रामचन्द्र जी हमनें अपनें मन में बसाये हैं
संक्षेप में राम कथा कह कर के
पारस जी हरषाये हैं
भगवान राम के
श्रीचरणों में सबने शीश झुकाये हैं
ग़ज़ल
चरणों का इक दास भी होना मँगता है
कुछ तो अपने पास भी होना मँगता है
अल्लम गल्लम बहुत भर लिया झोली मेंं
अब थोड़ा सा ख़ास भी होना मँगता है
काजू और बादाम रखे हैँ प्लेटों मेंं
हाथों मेंं अब ग्लास भी होना मँगता है
काँपते हाथों से क्या क्या कर पाओगे
ज़ीवन मेंं कुछ पास भी होँना मँगता है
पतझड़ ही पतझड़ है अपने ज़ीवन मेंं
ज़ीवन मेंं मधुमास भी होँना मँगता है
मीरा राधा रुकमणि सब आ गईं यहाँ
व्रन्दावन मेंं रास भी होना मँगता है
ऊपर वाला पार लगायेगा तुमको
इतना तो विश्वास भी होना मँगता है
जिन गुनाहों की सज़ा मिली है तुमको
उन सब का एहसास भी होना मँगता है
कब तूफ़ान मचेगा अपने ज़ीवन मेंं
इसका कुछ आभास भी होना मँगता है
राम नें फ़िर से जन्म लिया है धरती पर
अब के फ़िर बनवास भी होना मँगता है
जानें क्या क्या हज़म कर गये नेता जी
अब तो इक उपवास भी होना मँगता है
कौन किसी को याद रखेगा पारस जी
अपना इक इतिहास भी होना मँगता है
पहले अपने बारे लिख
फिर तू चाँद सितारे लिख
नेताओ को भ्रष्टी लिख
जनता को बेचारे लिख
बहुत लिख लिए गाँधी नेहरू
अब अन्ना हजारे लिख
आधी रात को उठ कर लिख
या फिर साँझ सकारे लिख
हर तरफ़ है आग लगी
सूखे नदिया नारे लिख
बाढ़ आयी तो नदी बह गई
टूटे हुए किनारे लिख
क्यों तू पतझड़ की सुनता है
तू तो मस्त नज़ारे लिख
जुल्फें काली काली लिख
नैनो को कजरारे लिख
आँसू को तू मीठा लिख
या सागर को खारे लिख
दिवाली है
चारो तरफ़ अँधेरा है कहते है लोग दिवाली है
महँगाई बढ़ रही देश में
लोग यहाँ जी रहे कलेश में
दुश्मन मिलते दोस्त के भेष में
बंजर सारे खेत पड़े है
जख्मों में हरयाली है
कहीँ पे बाढे कहीँ पे सूखा
देश का हर बच्चा है भूखा
लोगों का व्यवहार है रूखा
बच्चो को नहीँ दूध मयस्सर
ये कैसी खुशहाली है
मयखानों में भीड़ लगी है
मन्दिर सूने पड़े हुए है
ये मेरा है वो तेरा है
सब इसी बात पर अडे हुवे है
मुझको देश का हर
मानव लगता आज़ मवाली है
थोड़े से दहेज की खातिर
सोफा कुर्सी मेज की खातिर
बी पी एल गोदरेज की खातिर
आज़ जला दिया जिन्दा जिसको कल कहते थे घरवाली है
बहू ले आकर खुश होते है
लाला ना हो तो रोते है
भ्रूण हत्या करवा देते है
अगर गर्भ में लाली है
चारो तरफ़ अँधेरा है कहते है लोग दिवाली है
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