संदीप कुमार बिश्नोई

जय माँ शारदे


मत्तगयंद सवैया छंद


 


प्रेम समान जलाकर दीपक , मानव ये तम द्वैष भगाओ। 


 


हो हृद पावन ये नर का अब , आप सुधा रस पान कराओ। 


 


ज्यों फुनगा उर प्रीत करे शुचि , वो नर को नित ज्ञान बताओ। 


 


पर्व प्रकाश पुनीत बना यह , प्रीत प्रसून सदा महकाओ। 


 


संदीप कुमार बिश्नोई


दुतारांवाली अबोहर पंजाब


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...