देख के दुख औरों के मेरा तो डरता साया।
और महफ़िल जो दिखे फिर तो उछलता साया।
********
तेज रफ्तार करोना की दिखी जो उसको।
फिर तो चलने में सड़क पे भी सहमता साया।
********
डोर रिश्तों की उलझती जा रही ऐसे है।
खुद के धागों में खुदी सिर्फ उलझता साया।
********
आस विश्वास है भगवान में उसको जादा।
फूल पूजा के सबेरे मेरा चुनता साया।
*********
हो गई उनकी दिवानी यूं सुनीता अब तो।
कृष्ण के पीछे सदा चलता है उसका साया।
*********
सुनीता असीम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें