सुनीता असीम

शमा जली है जो मन्दिर की बंदगी जागी।


मिला खुदा का बसेरा तो ज़िन्दगी जागी।


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जो मैल मन को लगा भावना बुरी जागे।


कि स्वच्छता को हटाया तो गन्दगी जागी।


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 हटाके घोर अंधेरा दिया जला मन का।


मिला खुदा का सहारा तो रोशनी जागी।


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मुझे सुलाके ही सोया है बंशीवाला वो।


सुबह जो नींद खुली खूब ताजगी जागी।


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जो हसरतें सो रही थीं कभी सुनीता की।


कि खास उनके इशारों से रफ्तगी जागी।


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सुनीता असीम


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