कन्हैया इस तरह तुमने मेरा जीवन संवारा है।
सफीने को मेरे जैसे मिला कोई किनारा है।
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जिसे पूजन नहीं भाए नहीं अर्चन करे तेरा।
दिया है वक्त ने उसको पलट उत्तर करारा है।
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अगर लौ लग गई तुमसे नज़ारा हर हमें भाए।
तुम्हारी इक अदा पे हमने तन मन धन भी वारा है।
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अंधेरे हों घने कितने जला है प्रेम का दीपक।
उसी की रोशनी में तो तुम्हें हमने निहारा है।
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अगर है चोर माखन का वो तोड़े मोह की गगरी।
सरस वो श्याम राधा का गुणों का भी पिटारा है।
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सुनीता असीम
७/११/२०२०
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