किसी का घर बसाना चाहिए था।
मुहब्बत से सजाना चाहिए था।
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खफ़ा होकर नहीं रिश्तों को तोड़ो।
कि जैसे हो निभाना चाहिए था।
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दिलों को जीतना ही इक कला है।
उसे कैसे लुभाना चाहिए था।
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बहुत ही रूठते थे तुम सदा ही।
मनाने का बहाना चाहिए था।
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जरूरत के समय तुम सोचते ये।
तुम्हें ही पहले आना चाहिए था।
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बिना ही बात हो गुस्सा दिखाते।
समझ तुमको ये आना चाहिए था।
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बढ़ाकर प्रेम की पींगें सुनीता।
नहीं ऐसे सताना चाहिए था।
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सुनीता असीम
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