सुनीता असीम

बेगानों से यारी तक करवा रक्खी है।


प्यार मुहब्बत की खुशबू फैला रक्खी है।


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खोटा काम नहीं करते हम फिर भी रब ने।


तकदीर बुरी ही अपनी लिखवा रक्खी है।


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अच्छी बात नहीं दुनिया से यारी करना।


थाम हथेली पर हमने दुनिया रक्खी है। 


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चार दिनों का मेला होता जग में रहना।


एक दुकाँ जिसमें हमने लगवा रक्खी है।


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लगती दुनिया आज पराई हमको सारी।


रंग सियारों सी चाहे रंगवा रक्खी है।


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सुनीता असीम


६/११/२०२०


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