सुनीता असीम

खुद से बातें करता होगा।


ठंडी आहें भरता होगा।


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बीत गया जो वक्त गुजरके।


मन उनमें ही रमता होगा।


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काटे कटते न विरहा के पल।


दिल उसका भी दुखता होगा।


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भूल गई सजनी उसको अब।


सोच गगन को तकता होगा।


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साथ बिताए लम्हे सुख के।


कैसे उनको भूला होगा।


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दर्द चुभोए कांटे कितने।


भीतर भीतर दुखता होगा।


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मनकी ज्वाला बढ़ती जाती।


तन भी उसमें जलता होगा।


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सुनीता असीम


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