सुनीता असीम

चहरा उसका ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब।


आंखें हैं पैमाने उसकी जिनसे छलके शराब।


लबों में खिलती हैं कलियाँ इस मुस्कान से-


हुस्न का ऐसा प्रश्न है वो जिसका नहीं ज़बाब।


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सुनीता असीम


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