नाम अमृत का पियो जितना बहुत।
प्रेम की बूंदें मगर चखना बहुत।
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है बड़ी दौलत रखो संतोष सब।
चाहिए कम तो नहीं रखना बहुत।
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राम का ही नाम सब कर लो सुमिर।
सिर्फ थोड़ा ही नहीं जपना बहुत।
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काम काले कर यहाँ छिपते रहे।
हर कदम ख़तरा रहे बचना बहुत।
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रोशनी तुमको खुदा की चाहिए।
तो दुखों की मार को सहना बहुत।
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आ रहा रोना बहुत ये सोचकर।
ज़िन्दगी का नाम है जलना बहुत।
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अब सुनीता की सजा को खत्म कर।
हो गया उसका यहां जलना बहुत।
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सुनीता असीम
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