मैं जिसे तलाश कर रहा हूँ।
उसकी याद में संवर रहा हूँ।
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राह ख़ार से भरी हुई हैं।
जिनसे आज मैं गुज़र रहा हूँ।
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जो मिली हैं रोक रास्ते में।
उनको पार कर निखर रहा हूँ।
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हिज़्र का खयाल ही है काफी।
बस जुदाई से ही डर रहा हूँ।
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कर्म मैंने तो नहीं किए जो।
आज कर्ज उनका भर रहा हूँ।
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सुनीता असीम
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