दूध से वो तो जले बैठे हैं।
जिल्लते दुनिया लिए बैठे हैं।
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कह नहीं पाए लबों से जो भी।
वो नज़र से ही कहे बैठे हैं।
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ख्वाब ही लगती रहीं जो खुशियां।
उन सभी को भी जिए बैठे हैं।
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जाम से इक दूर रहते थे जो।
आज नजरे मय पिए बैठे हैं।
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बात मन की जान लेते थे जो।
अनकहे से अनसुने बैठे हैं।
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बस हलाहल ही पिया जिसने वो।
गोद में उसको लिए बैठे हैं।
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कृष्ण की माया नहीं जो जानें।
मुख खुला जैसे ठगे बैठे हैं।
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जब सुनीता नाम उनका लेती।
वो तभी से जागते बैठे हैं।
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सुनीता असीम
६/११/२०२०
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