सुनीता असीम

दूध से वो तो जले बैठे हैं।


जिल्लते दुनिया लिए बैठे हैं।


*******


कह नहीं पाए लबों से जो भी।


 वो नज़र से ही कहे बैठे हैं।


*******


ख्वाब ही लगती रहीं जो खुशियां।


उन सभी को भी जिए बैठे हैं।


*******


जाम से इक दूर रहते थे जो।


आज नजरे मय पिए बैठे हैं।


********


 बात मन की जान लेते थे जो।


अनकहे से अनसुने बैठे हैं।


*******


बस हलाहल ही पिया जिसने वो।


गोद में उसको लिए बैठे हैं।  


********


कृष्ण की माया नहीं जो जानें।


मुख खुला जैसे ठगे बैठे हैं।


********


जब सुनीता नाम उनका लेती।


वो तभी से जागते बैठे हैं।


********


सुनीता असीम 


६/११/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511