गंगा मइया लोक गीत
दिनांक 28,11,20
अमृत है तेरा निर्मल जल
हे! पावन गंगा मइया ।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।
मां सब के पाप मिटा दो
हे! पापनाशिनी मइया ।
अब सारे क्लेश मिटा दो
हे! पतित पावनी मइया ।
भागीरथ के तप बल से
तुम आई धरणि पर मइया।
शिवशंकर के जटा जूट से
प्रगट हुई थी मइया ।
हे !जान्हवी हे! मोक्षदायिनी
अब पार लगा दो नइया।
सगरसुतों को तारण वाली
भव पार लगा दो मइया ।
इस धरती पर खुशहाली
तुमसे ही गंगे मइया।
आंचल तेरे जीना मरना
हम सबका होवे मइया।
मां शरण तुम्हारी आयी
हे! मुक्तिदायिनी मइया ।
हम सब तेरे बालक हैं
तुम हमरी गंगा मइया।
सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ
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