विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


जीने को जी रहे हैं ये माना तेरे बग़ैर


यह ग़म भी पड़ रहा है उठाना तेरे बग़ैर


 


बच्चों की ज़िद पे घर में दिये भी जला लिये


त्यौहार हर पड़ा है मनाना तेरे बग़ैर


 


हर चीज़ घर की आज है बिखरी हुई पड़ी


मुमकिन नहीं है तन्हा सजाना तेरे बग़ैर


 


यह हम ही जानते हैं कहें भी तो क्या कहें


मुश्किल है कितना घर को चलाना तेरे बग़ैर


 


अब दिल की दौलतों का बताओ तो क्या करें 


बेकार हो गया है खज़ाना तेरे बग़ैर


 


सुनता नहीं है कोई भी अब अपनी दास्ताँ


बेरंग हो गया है फ़साना तेरे बग़ैर


 


तुम साथ थे तो रौनक़ें रहती थीं हर तरफ़


साग़र हुआ है सूना ज़माना तेरे बग़ैर


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


बरेली उ.प्र.


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