ग़ज़ल--
किया उसने कभी नखरा नहीं था
मज़ा यूँ इश्क़ में आता नहीं था
बला का सब्र था आदत में उसकी
शिकायत वो कभी करता नहीं था
लगा मेले में भी यह दिल न आखिर
वहाँ जो दिलरुबा मेरा नहीं था
मैं करता प्यार का इज़हार कैसे
वो इतना पास भी आया नहीं था
इसी से मुश्किलें आती थीं हरदम
वो अपनी बात पर रुकता नहीं था
गये थे हम उसी में डूबने को
*समुंदर वो मगर गहरा नहीं था*
खुले दिल से मिले दोनों ही *साग़र*
किसी का भी वहाँ पहरा नहीं था
🖋️विनय साग़र जायसवाल
23/11/2020
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