ग़ज़ल--
हसीन ख़्वाब निगाहों के घर में पलते हैं
इसी गुमान में हम फूलों जैसा खिलते हैं
छुपाये रखते हैं हरदम उदासियाँ अपनी
हरेक शख़्श से हँसते हुए ही मिलते हैं
रह-ए-हयात में है ऐसी शख़्सियत अपनी
हमारे नाम हज़ारों चराग़ जलते हैं
सलाम करती है दुनिया हमें मुहब्बत से
कि जब भी सैर को सड़कों पे हम
निकलते हैं
झलक ज़रा सी दिखी थी कभी हमें उनकी
तभी से दीद को अरमां यहाँ मचलते हैं
हमारे आने की लगती है जब ख़बर उनको
उसी को सुनते ही वो मन ही मन उछलते हैं
उन्हीं के हुस्नो-तबस्सुम का फ़ैज़ है *साग़र*
मेरी ग़ज़ल में मुहब्बत के शेर ढलते हैं
🖋️विनय साग़र जायसवाल
बह्र-मुफायलुन फयलातुन मुफायलुन फेलुन
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