ग़ज़ल--
सूरज सबको बाँट रहा है , किरणो की मुस्कान
कौन है जिसने बंद किये हैं, सारे रौशनदान
आज सवेरे चिड़यों ने भी, गीत ख़ुशी के गाये
तोड़ गया फिर एक शिकारी ,अपना तीर कमान
हमने गीत सदा गाये हैं, सत्य अहिंसा प्यार के
देख के हमको हो जाता है,दुश्मन भी हैरान
भूल भी जाओ अब तो भाई, बरगद की चौपाल
अपने अपने अहम में गुम है,अब तो हर इंसान
देख के हैरत होती है इंसानों की मजबूरी
दो रोटी की खातिर क्या क्या,करता है इंसान
मैं मुफ़लिस हूँ जेब है खाली ,मँहगा है बाज़ार
कैसे अब त्यौहार मनाऊँ ,मुश्किल में है जान
आज दुशासन दुर्योधन कर्ण तुम्हारी खैर नहीं
अर्जुन ने अब तान लिया है ,अपना तीर कमान
सोच रहा हूँ चेहरे की हर सिलवट को धो डालूँ
बच्चों को अब होने लगी है सुख-दुख की पहचान
*साग़र* फूलों की ख़ुशबू के , चरचे दिल में रखिये
घेर लिये हैं कागज़ वाले फूलो ने गुलदान
🖋विनय साग़र जायसवाल
फेलुन×7
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