विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


सोच न इसमें क्या पाना क्या खोना क्या


प्यार के आगे होता चाँदी सोना क्या 


 


 मेरी ग़ज़लें उसने महफ़िल में गाईं


इससे बढ़कर और ख़ुशी का होना क्या 


 


प्यार में दी है जो उसने सौगात हमें


उन ज़ख़्मों को मरहम से अब धोना क्या 


 


यह नश्शा है इश्क़ का इसका तोड़ नहीं


इसको उतारे कोई जादू-टोना क्या


 


ढूँढ ले साथी तू भी कोई और यहाँ


धोखेबाज़ों के धोखों का रोना क्या


 


गमलों की फ़रमाइश है जब नागफनी


फूलों के बीजों को घर-घर बोना क्या 


 


 *साग़र* ग़ज़लें सुनकर आँसू बह निकलें 


आखिर इन में इतना दर्द समोना क्या 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


6/11/2020


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