विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-


उसकी आँखों में ख़्वाब मेरा है


यह मुक़द्दर जनाब मेरा है


 


उसका सानी नहीं ज़माने में


दोस्त वो लाजवाब मेरा है


 


उसने महफ़िल में पढ़ दिया जिसको


शेर वो कामयाब मेरा है


 


उसको सब लाजवाब कहते हैं


क्या हसीं इंतिख़ाब मेरा है 


 


 महज़बीनों को देख लो साहिब


सबकी चाहत गुलाब मेरा है


 


जो है वादा उसे निभाऊँगा


आज भी यह जवाब मेरा है 


 


जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*


तब से जीना अज़ाब मेरा है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


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