विनय साग़र जयसवाल

ग़ज़ल----


 


अता मुझे भी उजाले की इक नज़र कर दे


तू अपनी चाँद सी सूरत ज़रा इधर कर दे


 


किसी को याद मैं आता रहूँ ज़माने तक


मेरी हयात मुझे इतना मोतबर कर दे


 


सुना है मैंने कि आहों में आग होती है


मेरे ख़ुदा मेरी आहों को बेअसर कर दे


 


वो जब मिला है तो ग़ैरों की बात ले बैठा


कोई तो शाम वो इक मेरे नाम पर कर दे


 


उसी घड़ी की है जुस्तजू तो बरसों से


जो उनको मेरी मुहब्बत का हमसफ़र कर दे


 


मेरे सिवा भी मेरे घर में कोई रहता है


कहीं नज़र न मेरे दिल को यह ख़बर कर दे


 


तमाम उम्र रहे तू ही मेरी आँखों में


तू इस यक़ीन को कुछ इतना पुर असर कर दे


 


तमाम शहर में जाये कहीं भी तू साग़र


तू मेरे घर को मगर अपनी रहगुज़र कर दे


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


हयात-जीवन


मोतबर--विश्वास के योग्य


बहर-मुफायलुन-फयलातुन-मुफायलुन-फेलुन


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