निशा
निशा
देती निमंत्रण
चराचर स्वीकार करता
दिवस के पहले प्रहर से
कर परिश्रम
रात्रि में विश्राम करता
सन्ध्या समय
मिल तारों से
शशि को साथ लेकर
करती विहार
प्रतिदिन रवि से
विदा लेकर
चिर शांति की
अनुचरी
वह शांत यामा
सुख स्वप्नों की
सहचरी
शशि की वामा
करती हृदय को
शांत थमता
शोर और व्यवधान
बिखरती
चाँदनी की उजास
चकोर और चकोरी
की आस
निशा देती निमन्त्रण
कवि को मौन
सा आमंत्रण
मदमाती सी
कहे मन की बात
उतारो कागज़ पर
कविराज
निज हृदय
के हालात
सुकुमारी सी मैं
निशा
निश दिन करूँ में
सबके जीवन पर
राज
डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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