डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहा-लेखन बोले प्यारी कोकिला,जब आए मधुमास। पिया-मिलन विश्वास की,जागे मन में आस।। हैं रवि-शशि-तारे सभी,आभूषण आकाश। अहो भाग्य है अवनि का,पाए सदा प्रकाश।। अगहन मास पवित्र अति,इसमें प्रभु का वास। धूप गुनगुनी सूर्य पा,हर्षित चित्त उदास ।। खंजन नैना बाँवरे,करते प्रबल प्रहार। परम प्रतापी प्रेम के,हैं प्यारे उपहार।। शीतल अगहन यामिनी,माँगे सदा अलाव। हे अलाव तुम धन्य हो,तुम हो सूत्र लगाव।। उदित सूर्य शोभन लगे,शोभन नीलाकाश। उल्लू जा छुपते कहीं,होकर बहुत हताश।। खिला हुआ रवि-चंद्र से,है अपना संसार। वायु-नीर रक्षा करें, देकर शक्ति अपार ।। ©डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

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