डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) लक्ष्य सदा रखना शिखरों पर, और कहीं मत ध्यान रहे। मंज़िल जब भी मिल जाती है- तन-मन में न थकान रहे।। एक बार जब बढ़ें कदम तो, कभी नहीं पथ पर रुकते। वीर-धीर जन बढ़ते-रहते, कभी न पा संकट झुकते। जब आते तूफ़ान राह में- उनके दिल चट्टान रहे।। तन-मन में न थकान रहे।। संकट देते साथ सदा ही, यदि मन में उत्साह रहे। शोभा देती वह सरिता ही, जिसमें सतत प्रवाह रहे। सिंधु-पार कर जाता नाविक- यदि ऊँचा अरमान रहे।। तन-मन में न थकान रहे।। चले पथिक यदि लक्ष्य साध कर, मंज़िल स्वागत करती है। क़ुदरत की तूफ़ानी ताक़त- मधु फल आगत जनती है। जंगल में भी मंगल होता- यदि मन में श्रमदान रहे।। तन-मन में न थकान रहे।। अर्जुन सदृश लक्ष्य रख पथ पर, सतत पथिक बढ़ते रहना। दिन हो चाहे रात अँधेरी, स्वप्न सदा गढ़ते रहना। जो अर्जुन सा है संकल्पित- उसका जग में मान रहे।। तन-मन में न थकान रहे।। कंटक बिछीं भले हों राहें, तो भी विचलित मत होना। रहें धुंध से भरी दिशाएँ, फिर भी धीरज मत खोना। जो ख़तरों का करे सामना- उसका ही गुणगान रहे।। मंज़िल जब भी मिल जाती है- तन-मन में न थकान रहे।। ©डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

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