"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
गीत(16/14)
लक्ष्य सदा रखना शिखरों पर,
और कहीं मत ध्यान रहे।
मंज़िल जब भी मिल जाती है-
तन-मन में न थकान रहे।।
एक बार जब बढ़ें कदम तो,
कभी नहीं पथ पर रुकते।
वीर-धीर जन बढ़ते-रहते,
कभी न पा संकट झुकते।
जब आते तूफ़ान राह में-
उनके दिल चट्टान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
संकट देते साथ सदा ही,
यदि मन में उत्साह रहे।
शोभा देती वह सरिता ही,
जिसमें सतत प्रवाह रहे।
सिंधु-पार कर जाता नाविक-
यदि ऊँचा अरमान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
चले पथिक यदि लक्ष्य साध कर,
मंज़िल स्वागत करती है।
क़ुदरत की तूफ़ानी ताक़त-
मधु फल आगत जनती है।
जंगल में भी मंगल होता-
यदि मन में श्रमदान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
अर्जुन सदृश लक्ष्य रख पथ पर,
सतत पथिक बढ़ते रहना।
दिन हो चाहे रात अँधेरी,
स्वप्न सदा गढ़ते रहना।
जो अर्जुन सा है संकल्पित-
उसका जग में मान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
कंटक बिछीं भले हों राहें,
तो भी विचलित मत होना।
रहें धुंध से भरी दिशाएँ,
फिर भी धीरज मत खोना।
जो ख़तरों का करे सामना-
उसका ही गुणगान रहे।।
मंज़िल जब भी मिल जाती है-
तन-मन में न थकान रहे।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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