डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-19 अंगद-चरन न उठ केहु भाँती। भागहिं सिर लटकाय कुजाती।। जस नहिं तजहिं नेम-ब्रत संता। महि नहिं तजै चरन कपि-कंता।। भागे जब सभ लाजि क मारा। रावन उठि अंगद ललकारा।। झट उठि पकरा अंगद-चरना। अंगद कह मम पद नहिं धरना।। गहहु चरन जाइ रघुनाथा। प्रभुहिं जाइ टेकउ निज माथा।। रामासीष उबारहिं तोहीं। नहिं त तोर कल्यान न होंहीं।। सुनतै अस तब रावन ठिठुका। गरुड़हिं देखि ब्यालु जिमि दुबका।। तेजहीन रावन अस भयऊ। दिवस-प्रकास चंद्र जस रहऊ।। सिर झुकाय बैठा निज आसन। जनु गवाँइ संपति-सिंहासन ।। राम-बिरोधी चैन न पावहिं। बिकल होइ के इत-उत धावहिं।। रचना बिस्व राम प्रभु करहीं। प्रभु-इच्छा बिनास जग भवहीं।। तासु दूत-करनी कस टरई। प्रभु-महिमा कपि-चरन न हटई।। चलत सकोप अंगद कह रावन। रन महँ मारब तोहिं पछारन।। सुनि रावन बहु भवा उदासू। अंगद-बचनहिं सुनत निरासू।। होइ अचंभित निसिचर लखहीं। रिपु-मद रौंद के अंगद चलही।। दोहा-अंगद जा तब राम-पद,पकरा पुलकित गात। रौंद के रिपु कै सकल मद,सजल नयन हर्षात।। डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

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