*त्रिपदियाँ*
हो गई है शून्य अब संवेदना भी,
हो गई कुंठित सभी की चेतना भी।
अब न होती मन में कोई वेदना भी।।
क्या हो गया संसार को भगवन तेरे,
लौट जाते हैं सभी भिखारी सवेरे।
डाँट भी खाते जभी लेते हैं फेरे।।
हो गया अभी इंसान है पाषाण क्यूँ,
हरे इंसान ही इंसान का प्राण क्यूँ?
नहीं होते दिखे विश्व का कल्याण क्यूँ??
अब तो चलाओ कोई जादू ऐ खुदा,
इस डूबती कश्ती के तुम हो नाखुदा।
नहीं इंसानियत की सोच अब हो जुदा।।
चमन में दोस्ती के फूल खिलते रहें,
दिलों में दोस्ती के भाव पलते रहें।
सब लोग आपस में गले मिलते रहें।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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