*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-20
साँझ परे बिलखत दसकंधर।
भवन परा असांत भयंकर।।
जाइ तहाँ पुनि कहै मँदोदर।
राम बिरोधहिं कंत न अब कर।।
जासु दूत अस करि करनामा।
दियो तोरि सभ तव अभिमाना।।
भल तुम्ह जानो राम-प्रतापू।
जानि गरल मत पीवहु आपू।।
जानउ तुम्ह मारीच-कहानी।
किया जयंत याद निज नानी।।
हत बाली सुग्रीव बचावा।
सिव-धनु तोरि प्रभाव दिखावा।।
सूपनखा-गति जानउ तोहीं।
खर-दूषन-कबंध जे होंहीं।।
अस रामहिं सँग करउ मिताई।
यहि मा तव मम होय भलाई।।
बान्हि क सिंधु कपिन्ह अलबेला।
पहुँचे सेन समेत सुबेला ।।
पुनि न कहहु तेहिं नर हे नाथा।
प्रभु पहँ जा झुकाउ निज माथा।।
मरन-काल जब आवै नियरे।
मन हो भ्रमित होय जस तुम्हरे।।
दोहा-जेहि कारन सुनु नाथ गे,पुत्र दोउ सुर-धाम।
अब बिरोध तिसु नीक नहिं,सुमिरउ रामहिं नाम।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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