डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 वहम(ग़ज़ल)

यदि मन में पलता ज़रा भी वहम है,

 दुनिया लगे के यहाँ ग़म ही ग़म है।।


बहुत ही भयानक वहम भाव भरता,

लगे भूतखाना निजी जो हरम है।।


लाता विचारों में बदलाव झटपट,

वही शत्रु लगता जो अपना सनम है।।


सुकूँ-चैन सारे वहम छीन लेता,

 छुपा साथ रहता सदा ही भरम है।।


कभी भी न निर्णय ये लेने देता,

बड़ा बेरहम ये न करता रहम है।।


ख़ुदा न करे के कभी ऐसा होए,

यदि हो गया समझो फूटा करम है।।


न चैन दिन में न रातों में नींदिया,

काँटे चुभोता जो बिस्तर नरम है।।

        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

            9919446373

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