*किसान और राजनीति*
सियासी दाँव-पेंच,झूठ-फरेब से
दूर रहता है सीधा-सादा,भोला-भाला
अपना किसान।
जान नहीं पाता है कि
फँस जाता है वह एक ऐसे
जाल में जो शायद रहता है
ठीक चक्रव्यूह जैसा-
फँस कर मरना होता है-
जिसमें अभिमन्यु को
निश्चित रूप से।
लगता है बन गया है आज भी
सियासी-स्वार्थी दुर्योधनों का
एक घातक चक्रव्यूह-
फँसना है जिसमें निश्चित रूप से
एक भोले-भाले-अबोध अभिमन्यु को।
ये सियासी बिचौलिए-आढ़तिये-पिचाली,
स्वार्थी दुर्योधन-
फैला दिए हैं अपना मारू फंदा।
है अभी वक्त,सँभल जाओ-
ऐ आज के अभिमन्यु!
हो तुम अब भी स्वतंत्र।
कहीं भी जाओ।
जा सकते हो-पूरे देश में।
पा सकते हो इच्छित फल पूर्ण रूप से-
अपने श्रम का-
अपने पसीने का-बेहिचक।
डर है-कहीं,
सियासी-विध्वंसक आँधी में
उजड़-बिखर न जाय-
तुम्हारा यह महकता-
प्यारा चमन।
तुम्हारा भोलापन-हो सकता है-
तुम्हें ही न निगल जाय।
आओ, लौट आओ।
चमन तुम्हारा बुलाता है
तुम्हें।
°© डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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