डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *किसान और राजनीति*

सियासी दाँव-पेंच,झूठ-फरेब से

दूर रहता है सीधा-सादा,भोला-भाला

अपना किसान।

जान नहीं पाता है कि

फँस जाता है वह एक ऐसे

जाल में जो शायद रहता है

ठीक चक्रव्यूह जैसा-

फँस कर मरना होता है-

जिसमें अभिमन्यु को

निश्चित रूप से।

लगता है बन गया है आज भी

सियासी-स्वार्थी दुर्योधनों का

एक घातक चक्रव्यूह-

फँसना है जिसमें निश्चित रूप से

एक भोले-भाले-अबोध अभिमन्यु को।

ये सियासी बिचौलिए-आढ़तिये-पिचाली,

स्वार्थी दुर्योधन-

फैला दिए हैं अपना मारू फंदा।

है अभी वक्त,सँभल जाओ-

ऐ आज के अभिमन्यु!

हो तुम अब भी स्वतंत्र।

कहीं भी जाओ।

जा सकते हो-पूरे देश में।

पा सकते हो इच्छित फल पूर्ण रूप से-

अपने श्रम का-

अपने पसीने का-बेहिचक।

डर है-कहीं,

सियासी-विध्वंसक आँधी में

उजड़-बिखर न जाय-

तुम्हारा यह महकता-

प्यारा चमन।

तुम्हारा भोलापन-हो सकता है-

तुम्हें ही न निगल जाय।

आओ, लौट आओ।

चमन तुम्हारा बुलाता है

     तुम्हें।

            °© डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

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