*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-33
छमहु नाथ मम अवगुन करनी।
बिनु तव कृपा न नभ-जल-धरनी।।
बिनु तव कृपा न अनल-प्रकासा।
सुमिरत नाथहिं काल-बिनासा।।
पाइ नाथ-आयसु सभ रहहीं।
मान सहित नाथ तुम्ह रखहीं।।
मैं सुखि जाब नाथ तव बाना।
करउ नहीं अस कृपा-निधाना।।
तब हँसि कहे राम रघुराई।
तुमहिं बता अब कोउ उपाई।
नाथ नील-नल दोऊ भाई।
पाए ऋषि-असीष लरिकाई।।
छुवत तिनहिं गिरि-पाथर भारी।
तैरहिं ते जल-सिंधु मँझारी ।।
यहि बिधि जाउ नाथ वहि पारा।
जथा-सक्ति हम होब सहारा।।
मम उत्तर-दिसि कछु खल बासी।
करउ तिनहिं प्रभु यहि सर नासी।।
अस कहि सिंधु गवा निज जल मा।
धन्य नाथ जग गावै महिमा ।।
प्रभु गुन-गान जगत जे करही।
बिनु जहाज भव-सागर तरही।।
प्रभु-सुमिरन जग मंगल-कारक।
कलि-प्रभाव रहि सकै न मारक।।
सोरठा-करुना-निधि प्रभु राम,हरहिं तुरत संकट सकल।
राम-नाम अभिराम,जपहु सदा सभ जन जगति।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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