डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-33

छमहु नाथ मम अवगुन करनी।

बिनु तव कृपा न नभ-जल-धरनी।।

     बिनु तव कृपा न अनल-प्रकासा।

     सुमिरत नाथहिं काल-बिनासा।।

पाइ नाथ-आयसु सभ रहहीं।

मान सहित नाथ तुम्ह रखहीं।।

     मैं सुखि जाब नाथ तव बाना।

     करउ नहीं अस कृपा-निधाना।।

तब हँसि कहे राम रघुराई।

तुमहिं बता अब कोउ उपाई।

      नाथ नील-नल दोऊ भाई।

      पाए ऋषि-असीष लरिकाई।।

छुवत तिनहिं गिरि-पाथर भारी।

तैरहिं ते जल-सिंधु मँझारी ।।

     यहि बिधि जाउ नाथ वहि पारा।

      जथा-सक्ति हम होब सहारा।।

मम उत्तर-दिसि कछु खल बासी।

करउ तिनहिं प्रभु यहि सर नासी।।

     अस कहि सिंधु गवा निज जल मा।

      धन्य नाथ जग गावै महिमा ।।

प्रभु गुन-गान जगत जे करही।

बिनु जहाज भव-सागर तरही।।

     प्रभु-सुमिरन जग मंगल-कारक।

      कलि-प्रभाव रहि सकै न मारक।।

सोरठा-करुना-निधि प्रभु राम,हरहिं तुरत संकट सकल।

           राम-नाम अभिराम,जपहु सदा सभ जन जगति।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

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